Picture Courtesy: Shaantanu Kulkarni |
मुर्दोंकी बस्ती है... प्रेम बांट रहा हू !
इन्हे प्रेम नही, प्राण चाहिये...
फिरसे व्यर्थ गवांनेको...!
मुर्दोंकी बस्ती है... प्रकाश बांट रहा हू !
इन्हे प्रकाश नही, गहन अंधेरा चाहिये...
फिरसे गहरी नीद्रामे सो जानेको...!
मुर्दोंकी बस्ती है... जागरण बांट रहा हू !
इन्हे जागरण नही, गहरी मूर्च्छा चाहिये...
फिरसे सपनोमे खो जानेको...!
शायद... मै ही अंधा हूं...
जो देख नही पाया की,
यह तो अंधोंकी बस्ती है!
अंधोंकी बस्तीमे... चश्मे बांट रहा हूं...! LOl
सदगुरु शरण
नितीन राम
२५ जनवरी २०१४
www.abideinself.blogspot.in
Whatever the question, Love is the Answer!
2 comments:
Dear Nitin
Marvellous.100%true.
Hum andhonke sath rahate hai iss
satya ko nahi bhule. Issi karan mazeme jee rahe hai.
Apaka baddappan hai ki aap chashme batate phirate ho.
Love.
Jai-Guru.
Exceptionally beautiful.......
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