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Thursday, May 07, 2009

झुकनेकी कला

तुम सिर्फ.... झुकनेकी कला सिखो....
पेड्.....पत्थर्.....पहाड.....
या जमीन... या आंसमान...
फिर्... धीरे... धीरे... धीरे...
जहांभी तुम्हारा सिर होगा....
तुम अपनेही पैर पाओगे....
तुम हर जगह,
खुदकोहि पाओगे....
खुदीकोहि पाओगे....!!!

जय गुरु 

Nitin
07 May 2009
www.abideinself.blogspot.com

2 comments:

Anonymous said...

beautiful

Anonymous said...

Very Nice - Subbu